महाकवि ईसरदास का जीवन परिचय | Isardas Ka Jivan Parichay in Hindi

परिचय

महाकवि ईसरदास – जिन्हें कभी-कभी “महात्मा ईसरदास” भी कहा जाता है – एक 16वीं-17वीं शताब्दी के भक्ति-कालीन राजस्थानी (डिंगल) भाषा के महान कवि हैं।वे मुख्यतः भगवद्-भक्ति, कृष्ण-भक्ति, और संत-परंपरा के अंतर्गत लिखे गए कवित्व के लिए प्रसिद्ध हैं।


जीवन-काल एवं पृष्ठभूमि

  • जन्म ≈ 1539 ई. (लगभग) — स्थान: राजस्थान के भागरेश (भदरेश) ग्राम, वर्तमान में राजस्थान में।
  • (निधन) ≈ 1618 ई. — स्थान: लूणी नदी के पास, राजस्थान।
  • पिता: सुराजी बारहठ, माता: अमरबाई।
  • वह डिंगल भाषा (मध्य-कालीन राजस्थानी) के कवि थे।
  • इनके जीवन और कर्मों पर विस्तृत शोध और जीवनी लिखी गई है, जैसे “महाकवि ईसरदास बारहठ की प्रामाणिक जीवनी”

लेखन-शैली एवं कृतियाँ

  • ईसरदास जी ने भगवद्-भक्ति तथा कृष्णभक्ति की भावभूमि पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उदाहरण के लिए: हरि-रस (हरिरस)Rajasthani Granthagar
  • उनकी लेखन शैली में डिंगल भाषा की लोक-लय, भक्ति भाव, श्रृंगार-विरह मिश्रित रस का प्रचुर प्रमाण मिलता है।
  • उनके ग्रंथों में लोक-गायन योग्य छंद, संगीतात्मकता तथा भक्त-भावना की सहज अभिव्यक्ति मिलती है।
  • उल्लेखनीय कृतियों में –
    • “देवियांण” (Deviyan) नामक ग्रंथ, जिसमें देवी-उपासना एवं शक्ति-परंपरा का वर्णन है।
    • “हरि-रस” (Hariras) जिसमें कृष्ण-भक्ति का स्वरूप प्रमुख है।

प्रमुख घटक (टैबल स्वरूप में)

क्र.विषयविवरण
1जन्म व स्थानलगभग 1539 ई., भदरेश ग्राम, राजस्थान
2निधनलगभग 1618 ई., लूणी नदी के समीप, राजस्थान
3भाषा-शैलीडिंगल (पुरानी राजस्थानी)
4प्रमुख विषयकृष्ण-भक्ति, देवी-उपासना, भक्ति-साहित्य
5प्रमुख कृतियाँहरि-रस, देवियांण, अन्य भक्ति ग्रंथ
6महत्वराजस्थान-गुजरात क्षेत्रीय भक्ति-काव्य परंपरा में मील-पत्थर

साहित्यिक महत्व

  • ईसरदास जी ने राजस्थानी-डिंगल साहित्य में भक्ति-परंपरा को स्थान दिया और उसे जन-मानस तक पहुँचाया।
  • उनकी कृतियाँ आज भी राजस्थान एवं गुजरात के भक्ति-साहित्य और लोक-गायन में जीवित हैं।
  • उन्होंने यह दिखाया कि स्थानीय भाषा-शैली में भी गहरा साहित्य एवं प्रेरणा समाहित हो सकती है।
  • उनके द्वारा प्रस्तुत भाव-दृष्टि — प्रेम, समर्पण, त्याग — आधुनिक समय में भी प्रेरणा स्रोत हैं।
Scroll to Top