“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।”
यह प्रसिद्ध दोहा आदिकालीन कवि महाकवि चंदबरदाई ने रणभूमि में उच्चारित किया था। इस दोहे के माध्यम से उन्होंने अपने प्रिय मित्र सम्राट पृथ्वीराज चौहान को संकेत दिया था, जिससे उन्होंने शहाबुद्दीन गोरी को शब्दवेधी बाण से भेद दिया था। यह प्रसंग हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास दोनों में अमर है।
चंदबरदाई का परिचय
| विषय | विवरण |
|---|---|
| पूरा नाम | चंदबरदाई (वास्तविक नाम – बलिद्ध्य) |
| जन्म वर्ष | लगभग 1148 ईस्वी (कुछ मत 1205 ईस्वी भी) |
| जन्म स्थान | लाहौर, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) |
| पिता का नाम | चौहानों के राजपुरोहित |
| मित्र | पृथ्वीराज चौहान (दिल्ली-अजमेर के नरेश) |
| मुख्य रचना | पृथ्वीराज रासो |
| भाषा शैली | ब्रजभाषा, अपभ्रंश, राजस्थानी मिश्रण |
| मुख्य रस | वीर रस और श्रृंगार रस |
| प्रसिद्ध छंद | छप्पय छंद |
| मृत्यु | पृथ्वीराज चौहान के साथ, ग़ज़नी में (अनुमानतः) |
| काल | आदिकाल (वीरगाथा काल) |
चंदबरदाई का जन्म और प्रारंभिक जीवन
चंदबरदाई का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता अजमेर के चौहानों के पुरोहित थे, जिससे राजपरिवार से उनका गहरा संबंध रहा।
बाल्यकाल से ही वे अत्यंत बुद्धिमान, तीव्र स्मरणशक्ति वाले और काव्य-रचना में निपुण थे।
दिल्ली-अजमेर के महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान से उनकी गहरी मित्रता थी। वे केवल कवि ही नहीं बल्कि राजकवि, सामंत और विश्वसनीय सलाहकार के रूप में भी जाने जाते थे।
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय दिल्ली में व्यतीत किया और पृथ्वीराज के साथ युद्धक्षेत्र तक में साथ रहे।
साहित्यिक योगदान – ‘पृथ्वीराज रासो’
चंदबरदाई का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान है उनका महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’।
यह हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है और वीरगाथा काल की सबसे प्रमुख रचना है।
‘पृथ्वीराज रासो’ की विशेषताएँ:
- इसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन की घटनाओं का विस्तृत वर्णन है।
- प्रमुख रूप से वीर रस और श्रृंगार रस का सुंदर संगम मिलता है।
- लगभग 10,000 से अधिक छंद हैं, जो 69 अध्यायों में विभाजित हैं।
- इसमें उस समय की 6 प्रमुख भाषाओं का प्रयोग किया गया है।
- काव्य में राजपूत समाज की रीति-नीति, संस्कृति और युद्ध-परंपरा का सजीव चित्रण है।
- चंदबरदाई को विशेष रूप से ‘छप्पय’ छंद का आचार्य माना जाता है।
ग़ज़नी प्रसंग और चंदबरदाई की अंतिम यात्रा
जब शहाबुद्दीन गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर ग़ज़नी ले गया, तो कुछ समय बाद चंदबरदाई भी वहां पहुंचे।
उन्होंने अपने पुत्र जल्हण को पृथ्वीराज रासो सौंपते हुए कहा कि इसे पूर्ण करना उसका कर्तव्य होगा।
रासो में यह पंक्ति इस घटना का प्रमाण देती है:
“पुस्तक जल्हण हत्थ दै चलि गज्जन नृपकाज।
पृथिराजसुजस कवि चंद कृत चंदनंद उद्धरिय तिमि॥”
ग़ज़नी पहुंचकर उन्होंने पृथ्वीराज के संकेत पर गोरी को वाणी के माध्यम से निशाना बताया, और उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे का अंत कर लिया।
इस प्रकार कहा जाता है कि चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान का जन्म और मृत्यु एक ही दिन हुई।
चंदबरदाई का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभाव
- चंदबरदाई केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक सच्चे राष्ट्रभक्त और इतिहासकार थे।
- उन्होंने वीरता, निष्ठा और मित्रता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
- उनका रचा पृथ्वीराज रासो आज भी राजपूत गौरव, शौर्य और संस्कृति का प्रतीक है।
- भारतीय इतिहास में उन्हें हिंदी के प्रथम महाकवि (First Epic Poet of Hindi) के रूप में सम्मान प्राप्त है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत
हिंदी साहित्य के महान इतिहासकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है:
“चंदबरदाई हिंदी के प्रथम महाकवि हैं और उनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य है।”
